सामाज का शोषण होता रहे इसलिए संस्कृत विद्वान शिव को क्रोधित दिखाते हैं
सामाज का शोषण होता रहे इसलिए संस्कृत विद्वान शिव को क्रोधित दिखाते हैं
http://awara32.blogspot.com/2015/01/shiv-blessed-kamdev.html
इश्वर शिव परम पूज्य परमेश्वर हैं, जिनकी कोइ भी सीमाएं मानव के लिए निर्धारित करना संभव नहीं है, और चुकी समाज मानसिक रूप से पूरी तरह दास हो चूका है, इसलिए वोह कुछ प्रश्न पूछता नहीं , और इश्वर शिव जो की पूर्ण योगी भी हैं, और वैरागी भी, उनके वैराग मैं खोट दिखा दिया जाता है, यह कह कर की शिव क्रोधित हो कर तीसरी नेत्र खोल देते हैं |क्रोधित होकर उन्होंने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल कर भस्म कर दिया|
सबसे पहले तो यह समझ लें कि इश्वर सदेव श्रृष्टि हित, समाज हित और मानव हित मैं सोचते हैं, परन्तु आपकी मानसिकता दासता वाली रहे तभी शोषण संभव है, इसलिए आपको सबकुछ तोड़ मरोड़ कर इश्वर पर आपका विश्वास कम करने की नियत से बताया जाता है|
तभी धर्मगुरु आपकी मानसिकता पर हावी होकर समाज का शोषण बे रोकटोक कर सकते हैं| और इसमें संस्कृत विद्वान, जो विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में समाज से जो अनुदान मिलता है उस पैसे से पढ़ कर ज्ञान प्राप्त करते हैं, समाज के शोषण के लिए धर्मगुरुओ का साथ देते हैं |
कामदेव को शरीर रूपी बंधन से मुक्त करने की कहानी आपने भी सुनी है, मैंने भी सुनी है; एक बार फिर से उसपर नज़र डाल लेते हैं:-
१. इश्वर शिव कलयुग के अंत मैं जब पृथ्वी जलमग्न हो जाती है, तो समाधि मैं चले जाते हैं , और यह समाधि नए महायुग के सत्ययुग के आरम्भ से ठीक पहले, प्रकृति के विस्तार हेतु [या यह कह लीजिये माता पार्वती , जो की प्रकृति हैं, से मिलन के लिए] अत्यंत प्रसन्न मुद्रा मैं खुलती हैं |
२. उसी तरह से जब श्रृष्टि चक्रिये नहीं थी, प्रकृति सति होईं, इसके बाद हिमालय का विस्तार हुआ, तो भी नई श्रृष्टि के आरम्भ मैं जब सति पार्वती बनी तो, नई प्रकृति के स्वागत के लिए, इश्वर शिव प्रसन्न मुद्रा मैं अपनी समाधि तोड़ते हैं |
३. इश्वर समाधि तोड़ कर नई श्रृष्टि के आरम्भ का सन्देश देंगें, यह अपने आप मैं अत्यंत हर्ष उल्लास का विषय है, तथा इस नई श्रृष्टि के विकास के लिए कामदेव को भी प्रमुख भूमिका निभानी है, तो वे भी इश्वर शिव की समाधि की समाप्ती के शुभ अवसर का सुंदर तरीके से प्रबंध करते हैं|
४. शिव जी की समाधि समाप्त हुई, कामदेव ने जिस तरह से शिव जी की समाधि की समाप्ति के पर्व को अपनी रचना से और सुंदर बनाया, उसके लिए शिव जी ने प्रसन्न होकर उसको शरीर रूपी बंधन से मुक्त करा |
शिव जी की समाधि समाप्त हुई, कामदेव ने समाधि की समाप्ति के पर्व को अपनी रचना से और सुंदर बनाया, उसके लिए शिव जी ने प्रसन्न होकर उनको शरीर रूपी बंधन से मुक्त करा~~इसे पुरूस्कार समझ कर आगे बढ़ेंगे तो निष्कर्ष विज्ञान के अनुकूल होगा, और जैसा कि धर्मगुरु चाह रहेहैं, शिवजी ने क्रोधित होकर दण्डित करा तो समाज का शोषण होता रहेगा; वैसे सबकुछ गलत बताकर जिन्दा लाश तो बना दिया है समाज को
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इश्वर शिव परम पूज्य परमेश्वर हैं, जिनकी कोइ भी सीमाएं मानव के लिए निर्धारित करना संभव नहीं है, और चुकी समाज मानसिक रूप से पूरी तरह दास हो चूका है, इसलिए वोह कुछ प्रश्न पूछता नहीं , और इश्वर शिव जो की पूर्ण योगी भी हैं, और वैरागी भी, उनके वैराग मैं खोट दिखा दिया जाता है, यह कह कर की शिव क्रोधित हो कर तीसरी नेत्र खोल देते हैं |क्रोधित होकर उन्होंने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल कर भस्म कर दिया|
सबसे पहले तो यह समझ लें कि इश्वर सदेव श्रृष्टि हित, समाज हित और मानव हित मैं सोचते हैं, परन्तु आपकी मानसिकता दासता वाली रहे तभी शोषण संभव है, इसलिए आपको सबकुछ तोड़ मरोड़ कर इश्वर पर आपका विश्वास कम करने की नियत से बताया जाता है|
तभी धर्मगुरु आपकी मानसिकता पर हावी होकर समाज का शोषण बे रोकटोक कर सकते हैं| और इसमें संस्कृत विद्वान, जो विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में समाज से जो अनुदान मिलता है उस पैसे से पढ़ कर ज्ञान प्राप्त करते हैं, समाज के शोषण के लिए धर्मगुरुओ का साथ देते हैं |
कामदेव को शरीर रूपी बंधन से मुक्त करने की कहानी आपने भी सुनी है, मैंने भी सुनी है; एक बार फिर से उसपर नज़र डाल लेते हैं:-
१. इश्वर शिव कलयुग के अंत मैं जब पृथ्वी जलमग्न हो जाती है, तो समाधि मैं चले जाते हैं , और यह समाधि नए महायुग के सत्ययुग के आरम्भ से ठीक पहले, प्रकृति के विस्तार हेतु [या यह कह लीजिये माता पार्वती , जो की प्रकृति हैं, से मिलन के लिए] अत्यंत प्रसन्न मुद्रा मैं खुलती हैं |
२. उसी तरह से जब श्रृष्टि चक्रिये नहीं थी, प्रकृति सति होईं, इसके बाद हिमालय का विस्तार हुआ, तो भी नई श्रृष्टि के आरम्भ मैं जब सति पार्वती बनी तो, नई प्रकृति के स्वागत के लिए, इश्वर शिव प्रसन्न मुद्रा मैं अपनी समाधि तोड़ते हैं |
३. इश्वर समाधि तोड़ कर नई श्रृष्टि के आरम्भ का सन्देश देंगें, यह अपने आप मैं अत्यंत हर्ष उल्लास का विषय है, तथा इस नई श्रृष्टि के विकास के लिए कामदेव को भी प्रमुख भूमिका निभानी है, तो वे भी इश्वर शिव की समाधि की समाप्ती के शुभ अवसर का सुंदर तरीके से प्रबंध करते हैं|
४. शिव जी की समाधि समाप्त हुई, कामदेव ने जिस तरह से शिव जी की समाधि की समाप्ति के पर्व को अपनी रचना से और सुंदर बनाया, उसके लिए शिव जी ने प्रसन्न होकर उसको शरीर रूपी बंधन से मुक्त करा |
शिव जी की समाधि समाप्त हुई, कामदेव ने समाधि की समाप्ति के पर्व को अपनी रचना से और सुंदर बनाया, उसके लिए शिव जी ने प्रसन्न होकर उनको शरीर रूपी बंधन से मुक्त करा~~इसे पुरूस्कार समझ कर आगे बढ़ेंगे तो निष्कर्ष विज्ञान के अनुकूल होगा, और जैसा कि धर्मगुरु चाह रहेहैं, शिवजी ने क्रोधित होकर दण्डित करा तो समाज का शोषण होता रहेगा; वैसे सबकुछ गलत बताकर जिन्दा लाश तो बना दिया है समाज को
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