PratassmaraNam Morning Chants
PratassmaraNam Morning Chants
प्रा॒तर॒ग्निं प्रा॒तरिन्द्रं॑ हवामहे प्रा॒तर्मि॒त्रावरु॑णा प्रा॒तर॒श्विना॑।
प्रा॒तर्भगं॑ पूषणं॒ ब्रह्म॑णस्पतिं॑ प्रा॒तः सोम॑मुत रु॒द्रं ह॑वामहे ॥१॥
ऋषि:-मैत्रावरुणिर्वसिष्ठः। देवता-अग्नीन्द्रमित्रावरुणाश्विभगपूषब्रह्मणस्पतिसोमरुद्राः| छन्दः-जगती
प्रा॒तः | अ॒ग्निम् | प्रा॒तः | इन्द्रम् | ह॒वा॒म॒हे॒ | प्रा॒तः | मि॒त्रावरु॑णा | प्रा॒तः | अ॒श्विना॑ | प्रा॒तः | भग॑म् | पू॒षण॑म् | ब्रह्म॑णः | पति॑म् | प्रा॒तः | सोम॑म् | उ॒त | रु॒द्रम् | ह॒वा॒म॒हे॒ ||
अथर्ववेद तृतीयकाण्डे चतुर्थऽनुवाके प्रथमसूक्तस्य प्रथम मन्त्रः
ऋग्वेद ८ मण्डल ४१ अध्याय १ मन्त्रः
यजुर्वेद ३४ अध्याय ३४ मन्त्रः
वैदिकप्रातस्स्मरणमन्त्रः भाग्यसूक्तस्य प्रथममन्त्रः
prā̱tara.gniṁ prā̱tarindraṁ̍ havāmahe prā̱tarmi̱trāvaru̍ṇā prā̱tara.śvinā̍। prā̱tarbhagaṁ̍ pūṣaṇaṁ̱ brahm'aṇaspatiṁ̍ prā̱taḥ som'amuta ru.draṁ h'avāmahe ॥1॥
r̥ṣi:-maitrāvaruṇirvasiṣṭhaḥ। devatā-agnīndramitrāvaruṇāśvibhagapūṣabrahmaṇaspatisomarudrāḥ| chandaḥ-jagatī
prā̱taḥ | a̱gnim | prā̱taḥ | indram | ha.vā̱ma.he̱ | prā̱taḥ | mi̱trāvaru̍ṇā | prā̱taḥ | a̱śvinā̍ | prā̱taḥ | bhag'am | pū̱ṣaṇ'am | brahm'aṇaḥ | pati̍m | prā̱taḥ | som'am | u̱ta | ru.dram | ha.vā̱ma.he̱ ||
atharvaveda tr̥tīyakāṇḍe caturtha'nuvāke prathamasūktasya prathama mantraḥ
r̥gveda 8 maṇḍala 41 adhyāya 1 mantraḥ
yajurveda 34 adhyāya 34 mantraḥ
vaidikaprātassmaraṇamantraḥ bhāgyasūktasya prathamamantraḥ
प्रातःकाल में पार्थिव और सौर अग्नि को, इन्द्र - बिजली या सुर्य को, प्रातःकाल में मित्रावरुण को अर्थात् - प्राण और अपान को, प्रातःकाल में अश्विनी युगल अर्थात् कामों में व्याप्ति रखने वाले माता पिता का हम आह्वान करते हैं। प्रातः काल में भगम् - ऐश्वर्यवान , पूषण - पोषण करने वाले, ब्रह्मणस्पति - ज्ञान , ब्रह्माण्ड, अन्न एवं धन के पति अर्थात् परमेश्वर, प्रातःकाल में सोम - मथन होकर हमें ऐश्वर्य की अनुभूति कराने वाला अमृत - आत्मा को और दुःखनाशक रुद्र को हम बुलाते हैं। इस प्रकार हम ईश्वर का स्मरण कर अपने कर्तव्य का निर्वाहन प्रारम्भ करें।
In the morning, we remember the agni - earthern and solar, the indra - thunders and the sun, In the morning the mitravarUNa - means the praNa and apana, in the morning the ashwini twins means father and mother with expectations from us. in the morning we invoke, the bhagam - the majestic supremacy, the pUShaNa - the one who nurturs us, the brahmaNaspati - the lord of knowledge, universe, anna, and wealth, means the Almighty Brahman, in the morning, the soma - the one who makes us experience immoratility after being churned, that is the atman, and the removal of pains - the rudra. We should start our day by remembering Ishwara this way and then follow our assigned duties.
listen to the melodious chanting here:-
http://mymandir.com/p/mC43Q/
Originally shared by Angie Karan
When you wake up and your day starts, put your hand on your heart space..now feel the gratitude arising.. that's your love flame within.. come to this space through out your day.. your life will smile , even if the world around you isn't..😋 But your smile will surely make a huge difference to the world.
It is part of bhAgya sUktam . This sUktam comes in all three vedas , Rig-Veda, yajurveda , atharveda with slight differences.
ReplyDeleteThere is one different prataH mantra of sAmveda
Very nice post👍👍 .. keep it up👍👍👏
ReplyDeleteRV7.41 सौभाग्य सूक्तम्
ReplyDeleteऋषि: मैत्रावरुणिर्वसिष्ट = तांड्य ब्राह्मण के अनुसार मित्रावरुण प्राण और अपान हैं। इन को पूर्ण रूप से सबल करने वाला ऋषि मैत्रावरुणि है. यह वश में करने वालों में श्रेष्ठ होने से वसिष्ट है। अथवा उत्तम निवास शील होने से वसिष्ट है । यह जब तक इस शरीर में निवास करता है, उत्तम प्रकार से निवास करता है । राजा बन कर निवास करता है न कि दास बन कर. शक्तिशाली बन कर रहता है नकि असहायनिर्बल बन कर ।
ऐ 2.26 के अनुसार “वक्षुश्च मनश्च मित्रावरुणा” चक्षु और मन मित्रावरूण हैं,इन्द्रियों और मन दोनों को वश में रखनेवाला वसिष्ठ है ।
ऋ 7.11.3 में प्रभु से प्रार्थना करता है “त्वा युजा पृतनायू रभिष्याम्” प्रभु को साथ ले कर कामादि शत्रुओं और प्रलोभनों की सेना पर मैं विजय पाऊं,और “मा नो अग्रे अवीरते परादा दुर्वाससे” ऋ 7.11.19, हम वीर हों और हमारा वास अच्छा हो.
1. प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना ।
प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम ।। ऋ 7-41-1, अथर्व 3.16.1
“प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना ।“ सब से प्रथम सौभाग्यशाली जीवन के लिए मनुष्य को युगम देवता इंद्र- इच्छा और अग्नि- शक्ति का आह्वान करते हैं कि युग्म देवता मित्र - ओक्सीजन और वरुण –सब रूप में उपलब्ध जल तत्व हमारे युग्म पान और अपान वयु को संचालित करें, चक्षु और मन को वश में रख कर चलें . और पुनश्च “प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम” और हमारे सौभग्य के लिए हमें ब्रह्मांड की सब वस्तुओं के पोषक तत्वों के संरक्षण के लिए रुद्र देवता के द्वारा दूषित भाग को नष्ट करने की सोम देवता द्वारा ज्ञान और प्रवृत्ति मिले.
प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना ।
To live first thing that is required is will to live. That calls for invoking agni and Indra for energy and motivation for the life preserving twin of breathing in and breathing out. Sanskrit being a scientific language calls inhalation and exhalation as praaN and apan –. Pran or also pan inhaled breath is one that is fit for drinking - taking in, and apan the exhalation is no longer fit for the body . Then again the human breath is made of the twin Mitra and Varuna, Mitra the friendly one is also called Oxygen and Varun is also known to be universally available water in all its forms such as vapor, moisture, humidity and liquid water . प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम ।। And then one needs good healthy air to breath and nutrition for successful life. For this we invoke Soma i.e. the intelligence to rectify by Rudra –the killer of disease and undesirable portions from what we live on ,The air that we breath, our food, the environmental pollution , the waters and so on.
2. प्रातर्जितं भगमुग्रं हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता ।
आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याहं ।। ऋ 7-41-2, अथर्व 3.16.3
“प्रातर्जितं भगमुग्रं हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता” हम अपने सौभाग्य के लिए प्रात:कालीन समय से ही सूर्य देवता के उग्र प्रभाव से उत्पन्न विविध प्रभाव का आह्वान करते हैं.(जैसे विटामिन डी, नाना प्रकार के रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता , स्वच्छ जल प्रदान करने के लिए भूमि पर से प्रदूषित जल को स्वच्छ करने की क्रिया में वाष्प बना कर पुन: मेघों द्वारा पृथ्वी पर स्वच्छ जल का उपहार देना, वनस्पति , अन्न, ओषधियों का उत्पाद इत्यादि ) और ये सब “आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याहं “ समान रूप से निर्धन और राजा सब को मनन चिंतन से प्रेरित जीवन में ठीक आचरण द्वारा समान रूप से भोग करने के लिए उपलब्ध रहते हैं.
“प्रातर्जितं भगमुग्रं हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता” We celebrate the immense bounties that are borne of the sun ( such as Vitamin D, Photosynthesis for herbs, plants and crops to grow, sanitation of pathogens, Vaporizing of water of water for providing rains of life giving water etc.) “आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याहं” and these bounties are freely equally available to all the poorest as well as kings to enjoy by their thoughtful proper conduct in life.
3. भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवाददन्नः ।
ReplyDeleteभग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्वृवन्तः स्याम ।। ऋ 4-47-3, अथर्व 3.16.3
“भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवाददन्नः” हम उत्तम सौभाग्य के लिए सद्बुद्धि से सत्य ज्ञान द्वारा धन इत्यादि को प्रभु द्वारा दान समझ कर भोग के लिए प्राप्त करें. “भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्वृवन्तः स्याम” और उत्तम गौओं अश्वों इत्यादि ,उत्तम पुरुषों के सत्संग और मित्रता से परम ऐश्वर्य प्राप्त करें.
“भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवाददन्नः” We pray that we are blessed with the wisdom to earn all the wealth and bounties in life by fair ethical means and that we consider ourselves as mere trustees and not owners of these bounties “भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्वृवन्तः स्याम” and that we are blessed to enjoy the company of good virtuous friends cows horses etc for excellence in life.
4. उतेदानी भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम् ।
उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम ।। ऋ 4-47-4 , अथर्व 3.16.4
“उतेदानी भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्” सूर्य के उदय काल से ले कर मध्यान्ह और सूर्य के अस्त काल तक हम सब प्रकार के के ऐश्वर्य प्राप्त करें। .
और “उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम” इस सारे समय में हमारी बुद्धि में सुमति का वास रहे,जिस से हम सब प्रकार के दैवीय ऐश्वर्य का भोग करें.
. “उतेदानी भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्” Beginning with sun rise the morning throughout midday till evening
we should enjoy the best bounties of prosperity in life, and “उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम” during all
this time we should be blessed with the wisdom to enjoy the godly gifts of prosperity and excellent life.
5.भग एव भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम ।
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीति सनो भग पुरएता भवेह ।। ऋ 4-47-5. अथर्व 3.16.5
“भग एव भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम” प्रभु ही हमें देवताओं के सद्गुणों पर आचरण द्वारा सौभाग्यशाली धन इत्यादि प्राप्त कराते हैं इसी लिए वे भगवान भी कहलाते हैं ।“तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीति सनो भग पुरएता भवेह” इसी लिए तुम सब भगवान का आह्वान करो कि प्रगति के लिए मार्गदर्शन मिले.
6. समध्वरायोषसो नमन्तः दधिक्रावेव शुचये पदाय !
अर्वाचीनं वसुविदं भगं मे रथमिवाश्वा वाजिन आ वहन्तु !!RV7.41.6, अथर्व 3.16.6
प्रात:काल से ही सूर्य देवता को नमन कर के समाजोन्नति एवं सेवा द्वारा अर्वाचीन – Modern- उपलब्धियों और समृद्धि के साधनों को राष्ट्र एवं समाज सेवा हेतु प्राप्त कराने के यज्ञों में कुशल प्रबंधक राजा इत्यादि अपना दायित्व निभाने में लग जाएं.1
7. अश्वावतीर्गोमतीर्न उषासो वीरवतीः सदमुच्छन्तु भद्राः !
घृतं दुहाना विश्वतः प्रपीता यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः !! RV 7.41.7, अथर्व 3.16
कल्याणकारी उषाएं प्रतिदिन नव ऊर्जा की स्फूर्ति, पौष्टिक अन्नदि से परिपूर्ण करने वाले सुवीरों, गौओं के घी दूध से विश्व को हृष्ट पुष्ट बना कर और अश्वों से नित्य हमारा कल्याणमार्ग प्रशस्त करते रहें
subodh kumar 👌👌😊
ReplyDelete🙏🙏🙏